एकलव्य कितना महान था?
► एकलव्य एक महान धनुर्धर था उसकी रूचि बचपन से ही धनुर्विद्या सिखने में थी| गुरु द्रोणाचार्य ने जब उनको धनुर्विद्या सिखाने से इंकार कर दिया तो वह दूर से ही गुरु द्रोणाचार्य द्वारा अर्जुन को सिखाये जा रहे अभ्यास को ग्रहण करता और अभ्यास करता था| इस प्रकार वह गुरु द्रोणाचार्य को ही अपना गुरु मानने लगा|
एक बार जब पांडवों के साथ गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य के धनुर्विद्या के कौशल को देखा तो वे चकित रह गये तब गुरु द्रोणाचार्य को चिंता होने लगी कि अर्जुन के रहते एकलव्य कैसे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन सकता है?
एक दिन एकलव्य गुरु द्रोण की मूर्ति बनाकर अभ्यास कर रहा था| गुरु द्रोण ने देखा कि उनकी मूर्ति एकलव्य ने बनाई है तब गुरु को देख एकलव्य उसे दंडवत प्रणाम किया| द्रोणाचार्य ने पूछा की उसे किसने धनुर्विद्या सिखाई तब एकलव्य ने कहा- "मैंने आप से ही धनुर्विद्या सीखी है भले ही आपने मुझे अपना शिष्य नहीं माना परन्तु मैंने तो आपको ही गुरु माना इसलिए आप मुझसे जो चाहे गुरु दक्षिणा मांग सकते है"
द्रोणाचार्य ने अपनी चालाकी से एकलव्य का दाहिने हांथ का अंगूठा गुरु दक्षिणा में मांग लिया एकलव्य ने भी शिष्य होने का फर्ज बखूबी निभाया और एक क्षण में गुरु द्रोण को अपना अंगूठा गुरु दक्षिणा में दे दिया भला इतना बड़ा गुरु भक्त कौन होगा|
एक अर्जुन थे जिनके हाथों गुरु द्रोण का युद्ध में वध हुआ और दूसरी ओर एकलव्य जैसा शिष्य जिसने अपना अंगूठा गुरु को भेंट किया यही एकलव्य की महानता है|
गुरु द्रोण विवश थे
कहा जाता है कि जिनके ऊपर राजा का वश चलता है तो एक सर्वश्रेष्ठ गुरु भी इतनी बड़ी गलती कर सकता है| गुरु द्रोण को सिर्फ राज पुत्र को ही धनुर्विद्या सिखाने की अनुमति प्रदान की गई थी और उनका लक्ष्य था अर्जुन को दुनिया का सबसे सर्वश्रेषठ धनुर्धारी बनाना|
गुरु द्रोण का जीवन जब बेहद बुरे दौर से गुजर रहा था तब उनकी मदद करने से सबने इनकार कर दिया था| गुरु द्रोण ने भीष्म पितामह के कहने पर कौरवों और पांडवों को विद्या देने का वादा किया और भीष्म पितामह ने गुरु द्रोणाचार्य को सारा वैभव दिया जो उन्हें जरुरत थी|
कुछ लोग कहते है गुरु द्रोण नए एकलव्य से अंगूठा नहीं माँगा|
क्या सिखने को मिला?
► हमें इतिहास की इन बातो से बहुत कुछ सीखने को मिलता है हमें इतिहास से अच्छी बातों से सिख लेनी चाहिए परन्तु बुरी बातों को कभी नहीं दोहराना चाहिए|
►हमें आज के उन गुरुओं से अनुरोध है कि आप गुरु द्रोण की तरह व्यवहार न करें! क्योंकि आज का युग विद्या के क्षेत्र में मोल-भाव बहुत देखने को मिलता है सामान शिक्षा का आधार होना बेहद जरुरी है
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